West Bengal: दोस्तों हाल ही में एक घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचने का काम किया है और वो पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से जुड़ी हुई है। खबर कुछ यूँ है कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर एक महिला ने छेड़खानी का आरोप लगाया है। मीडिया रिपोर्ट्स में छपी खबरों के मुताबिक वो महिला राजभवन की एक काॅन्ट्रेक्ट कर्मचारी थी।
पीड़िता ने बीते गुरुवार को ही इस मामले की शिकायत हेयर स्ट्रीट पुलिस थाने में की। पुलिस ने इस मामले की जाँच तो शुरू कर दी लेकिन इस शिकायत पर FIR दर्ज नहीं की। अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर पुलिस ने ऐसा किया क्यों? क्या वजह हो सकती है? क्या पुलिस ने राज्यपाल के अवदे को देखकर FIR दर्ज नहीं की या कोई नियम कानून है, जो पुलिस को ऐसा करने से रोक रहा है? इन्हीं सब बातों पर हम चर्चा करेंगे?
क्यों राज्यपाल पर दर्ज नहीं हुआ FIR?
पश्चिम बंगाल (West Bengal) के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर इस समय महिला कर्मचारी से छेड़खानी का आरोप लगा है। जब से ये घटना सामने आई है, तब से ही इस मामले ने तूल पकड़े रखा है। पीड़िता का कहना है कि राज्यपाल ने उनके साथ दो बार छेड़खानी की है लेकिन अब तक पुलिस कोई कार्यवाई नहीं कर रही है। वहीं, इसके उलट सीवी आनंद बोस ने सारे आरोपों को गलत ठहराया है।
हालांकि, अब सवाल ये है कि राज्यपाल पर कार्यवाई क्यों नहीं हो रही है? तो इसका जवाब ये है कि सीवी आनंद बोस इस समय राज्यपाल के पद पर है, जिसकी वजह से उन्हें संवैधानिक छूट मिली है और जब तक वो इस पद पर रहेंगे, तब तक उनपर कोई कार्यवाई नहीं होगी। इसका जिक्र संविधान के अनुच्छेद 361 में किया गया है।
क्या है अनुच्छेद 361?
अब यहाँ अनुच्छेद 361 को समझते हैं, जो संविधान में लिखा। पश्चिम बंगाल (West Bengal) के राज्यपाल सीवी आनंद बोस पर जो इल्जाम है, उसके मुताबिक अनुच्छेद 361 में ये साफ़ लिखा है कि राष्ट्रपति हो या किसी राज्य का राज्यपाल, उसपर कोई भी अदालत आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं कर सकती है। वो भी तब तक, जब तक उनका कार्यकाल चल रहा है। अनुच्छेद 361 के मुताबिक राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ कोई वारंट भी जारी नहीं हो सकता है। बता दें कि अनुच्छेद 361 के दो उप-खंड में इसका जिक्र है।
किसने क्या कहा?
गौरतलब है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल के खिलाफ पुलिस कार्यवाई तो नहीं कर सकती है लेकिन FIR दर्ज कर जाँच जरूर कर सकती है। ऐसा अधिवक्ता विकास सिंह का कहना है। वहीं, एक वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े का भी कहना है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति को अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए कानून की अदालत में किसी भी बात का जवाब देने से छूट मिली हुई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट का भी इसपर कहना है कि राजयपाल द्वारा पद पर रहते हुए किये गए किसी भी कार्य के लिए न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं है।
इन सारी बातों का संबंध संविधान के अनुच्छेद 361 (2) से है। मतलब इन शक्तियों के रहते राज्यपाल पर कार्यवाई नहीं होगी और जब उनका कार्यकाल खत्म होगा, उसके बाद ही पुलिस कोई एक्शन ले सकती है।
राज्यपाल के बारे में कुछ बातें:-
1. आर्टिकल 153 में ये लिखा गया है कि हर राज्य का एक राज्यपाल होगा।
2. जब सातवां संविधान संशोधन 1956 में हुआ था, तब उसमे ये लिखा गया था कि एक राज्यपाल को दो राज्यों की जिम्मेदारी दी।
3. राज्यपाल को हर महीने 3 लाख 50 हजार रुपये का वेतन मिलता है।
4. राज्यपाल अपने राज्य का कार्यपालिका होता है।
5. राज्यपाल जनता द्वारा नहीं चुने जाते हैं, उनकी नियुक्ति होती है।
6. राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा होती है।
7. राज्यपाल का कार्यकाल 5 साल का होता है लेकिन राष्ट्रपति चाहें तो वो कभी भी राज्यपाल के पद से हटा सकते हैं।
8. जब राज्यपाल की नियुक्ति होती है, तो उस राज्य के हाई कोर्ट के जज उन्हें शपथ दिलाते हैं।
9. अगर राज्यपाल को इस्तीफा देना है, तो वो राष्ट्रपति को अपना इस्तीफा सौंपेंगे।
10. राज्यपाल बनने की आयु सीमा न्यूनतम 35 साल होनी चाहिए।
11. जिस भी राज्यपाल बनाया जा रहा है, उसपर किसी भी तरह का कर्ज ना हो, दिमागी स्तिथि ठीक होनी चाहिए और वो व्यक्ति किसी लाभ के पद पर ना हो। ये शर्ते होती हैं। साथ ही वो व्यक्ति उसी राज्य का नहीं होना चाहिए। बता दें कि भाग 5 में ये बताया गया है कि जब कभी आपत्काल लगता है, तो सारी शक्तियां राज्यपाल को मिलती ही और अगर वो व्यक्ति अपने ही राज्य का है, तो शक्तियों के दुरूपयोग की संभावना बढ़ सकती है।
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