कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur), ये नाम आज के युवा पीढ़ी के लिए काफी नया सा लगता होगा लेकिन वही युवा अपने माता-पिता से इस शख्स के बारे में पूछेंगे तो वो उन्हें विस्तार से कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) के बारे में बता सकते हैं। खासकर बिहार के लोग तो कर्पूरी ठाकुर से काफी परिचित होंगे। जो नहीं जानते, उनको बता दें कि कर्पूरी ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वो भी एक नहीं बल्कि दो बार। उनका पहला कार्यकाल दिसंबर 1970 से जून 1971 तक था जबकि दूसरा कार्यकाल दिसंबर 1977 से फरवरी 1979 तक था।
हालांकि, आज हम बात कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) की क्यों कर रहे हैं? इसके बारे में भी आपको बता देते हैं। दरअसल, आज बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की जयंती है। 24 जनवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है और इससे एक दिन पहले ही भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को भारत रत्न देने की बात कर दी है। बता दें कि उन्हें भारत रत्न (Bharat Ratna) मरणोपरांत दिया जा रहा है। ऐसे में आइये बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री से जुड़ी छोटी-बड़ी हर बात को जानते हैं।
Karpoori Thakur से जमींदार ने दबवाए पैर
ये घटना साल 1938 की है, जब शाम का वक्त था और एक छोटा लड़का मैट्रिक के रिजल्ट को देखकर अपने घर वापस आ रहा था। घर आते ही उसने कहा, ‘बाबूजी मैं मैट्रिक में मैं पहले दर्जे से पास हो गया।’ पहला दर्जा माने फर्स्ट डिवीजन। ये वो दौर था जब बिहार में मैट्रिक पास कर लेना बहुत बड़ी बात होती थी और वो भी फर्स्ट डिवीजन से। पिता ने जब ये सुना तो वो उसे समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव के जमींदार के पास ले गए, ये सोचकर की बड़े घर से कुछ मदद मिल जाएगी। बेटा आगे पढ़ जाएगा तो घर का कुछ भला हो जाएगा। पिता की आय कुछ खास नहीं थी क्योंकि वो गांव में हजाम थे।
जमींदार के पास जब अपने बेटे को पिता लेकर गए तो बच्चे ने जमींदार को बताया कि मैट्रिक में पहले दर्जे से पास हुआ हूँ। जमींदार साहब खटिया पर चौड़ में लेटे हुए थे और उसी दौरान उन्होंने कहा, ‘पहले दर्जे से पास हुए हो। चलो अब गोड़ दबाओ।’ गोड़ दबाओ का मतलब है, पैर दबाओ। बिहार की लोकल भाषा में पैर को गोड़ कहा जाता है। बच्चे ने जब ये सुना तो उसे लगा कि गोड़ दबाओ उसके दिमाग में दाग दिया गया है, जैसे जानवरों को दागा जाता है। कौन जानता था, इस घटना के 32 साल के बाद बिहार की सत्ता उसके कदमों में होगी और वो बिहार का मुखिया बनेगा और वो कोई और नहीं बल्कि कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) थे।